इस श्लोक के माध्यम से आचार्य चाणक्य कहते हैं कि शांति के समान कोई तपस्या नहीं है और जीवन में संतोष से बढ़कर कोई सुख नहीं है।
आचार्य चाणक्य सभी विषयों के ज्ञाता होने के साथ-साथ एक योग्य शिक्षक, मार्गदर्शक और रणनीतिकार भी थे।
उन्होंने अपनी चाणक्य नीति में यह भी बताया है कि मनुष्य को अपना जीवन सुख और शांति से बिताने के लिए क्या प्रयास करना चाहिए और कैसा व्यवहार करना चाहिए।
आचार्य चाणक्य ने अपनी चाणक्य नीति में बताया है कि जीवन का सबसे बड़ा सुख क्या है।
आचार्य चाणक्य ने संतोष को जीवन का सबसे बड़ा सुख माना है।
चाणक्य नीति में एक श्लोक है जिसकी पहली पंक्ति में लिखा है कि शांति के समान कोई तपस्या नहीं है, संतुष्टि से परे कोई सुख नहीं है।
दूसरे शब्दों में, आचार्य चाणक्य अपने श्लोक के माध्यम से कहते हैं कि शांति के समान कोई तपस्या नहीं है और जीवन में संतुष्टि से बड़ा कोई सुख नहीं है।
इस संसार में मनुष्य को चाहे कितना भी कुछ मिल जाए, उसका मन कभी संतुष्ट नहीं होता।